राम नहीं, तो मोतियों की माला भी मिट्टी के मोल की !

संसार में आज तक जितने भी भक्त हुए हैं उनमें हनुमान जी का स्थान सर्वोच्च है।  आईए पढते है हनुमान जी की सेवा और भक्ति का  अद्वितीय उदाहरण …

अयोध्या में राज्याभिषेक होने के पश्चात प्रभु श्रीराम ने उन सभी को सम्मानित करने का निर्णय लिया जिन्होंने लंका युद्ध में रावण को पराजित करने में उनकी सहायता की थी । जब हनुमान जी की बारी आई तो, भावना से अभिप्लुत श्रीराम ने उन्हें गले लगा लिया और कहा कि हनुमान ने अपनी निश्छल सेवा और पराक्रम से जो योगदान दिया है उसके बदले में ऐसा कोई उपहार नहीं है जो उनको दिया जा सके । मगर अनुराग स्वरूप माता सीता ने अपना एक मोतियों का हार उन्हें भेंट किया ।

हनुमान जी ने माला के प्रत्येक मोती को निकालकर सूंघा, फोडा तथा देखकर फेंक दिया । ऐसा करते- करते उन्होंने माला के समस्त मोतियों को फोडकर फेंक दिया । लंबे समय तक उन्हें निहारती माता सीता ने हनुमान जी से पूछा, ‘‘इतने अनमोल मोतियों की माला क्यों तोड दी ?’’

तब हनुमान जी ने कहा , ‘‘हमे ढूंढने पर भी इस माला में तथा माला के किसी भी मोती में श्रीराम दिखाई नहीं दिए। हम हमारे राम को ढूंढ रहे थे । राम नहीं, तो मोतियों की माला भी मिट्टी के मोल की !’’

माता सीता हनुमान जी की परीक्षा लेने के उद्धेश्य से पूछा, “क्या आपके सारे शरीर में श्रीराम दिखाई देते है ?  तब हनुमान जी ने अपनी छाती चीर कर माता सीता को अपने हृदय में बसे साक्षात श्रीराम और सीता की छवि दिखार्इ । भक्ति की इस अद्वितीय उदाहरण को देखकर भगवान श्रीराम ने हनुमान जी को गले से लगा लिया।

बच्चों, जो कृत्य भगवान का स्मरण कर किया जाता है, वह हनुमान जी को लुभाता है । हमें भी प्रत्येक कृत्य को अपने कुलदेवता को स्मरण कर एवं उन्हें प्रार्थना करने के उपरांत ही प्रारंभ करना चाहिए ।

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