कुंभपर्वक्षेत्र त्र्यंबकेश्वर तथा नासिक

Kumbh_mela_nashik

ये पुण्यक्षेत्र महाराष्ट्रमें गोदावरी नदीके तटपर स्थित हैं ।

१. त्र्यंबकेश्वर शब्दकी व्युत्पत्ति एवं अर्थ

त्रयः अम्बकाः यस्य सः त्र्यम्बकः ।

स ईश्वरो यत्र तत् स्थानं त्र्यम्बकेश्वरम् ।

भावार्थ : जिसके तीन नेत्र हैं, ऐसे शंकरजी जिस स्थानके ईश्वर हैं, वह स्थान त्र्यंबकेश्वर है । यह १२ ज्योतिर्लिंगोंमेंसे एक है ।

२. नासिक शब्दकी उत्पत्ति एवं अन्य नाम

लक्ष्मणने यहां शूर्पणखाके नाक-कान काटे थे । इसलिए यह क्षेत्र ‘नासिक’ नामसे प्रसिद्ध हुआ । विविध युगोंमें नासिकके विविध नाम बतानेवाला श्लोक आगे दिए अनुसार है –

कृते तु पद्मनगरं त्रेतायां तु त्रिकण्टकम् ।

द्वापरे तु जनस्थानं कलौ नासिकमुच्यते ।।

अर्थ : सत्ययुगके पद्मनगरको ही त्रेतायुगमें ‘त्रिकंटक’, द्वापरयुगमें ‘जनस्थान’ एवं कलियुगमें ‘नासिक’ (नाशिक) कहा गया है ।

३. पवित्र गोदावरी तीर्थ

माता पार्वतीने श्री गणेशकी सहायतासे लोककल्याणके सद्हेतुसे व्यूहरचना की तथा गौतम ऋषिपर गोहत्याका पाप लगाया । गौतम ऋषिने पापमुक्तिके लिए घोर तप किया एवं अपने तपोबलसे गंगाको स्वर्गसे पृथ्वीपर लानेके लिए भगवान शंकरसे याचना की । तब, मां गंगा ‘त्र्यंबकेश्वर’में ‘गौतमी’ अर्थात ‘गोदावरी’के रूपमें अवतरित हुईं । उस समय गुरुग्रह सिंह राशिमें थे । जिस समय पृथ्वीपर केवल सात देवता, सात ऋषि एवं सात मानव थे, उस समय केवल गौतमी थी । इसलिए, आद्य एवं श्रेष्ठ नदी होनेका सम्मान गोदावरीको प्राप्त हुआ । नासिक-त्र्यंबकेश्वर इस संयुक्त नामका बारंबार उल्लेख होता है; क्योंकि त्र्यंबकेश्वरमें गोदावरीमाताका उद्गम हुआ तथा नासिकमें तट चौडा हुआ।

४. क्षेत्रकी महिमा

४ अ. पंचमहातीर्थोंमें एक

भारतके पांच प्रमुख महातीर्थोंमें इसकी गणना होती है । इस संदर्भमें एक श्लोक इस प्रकार है –

नासिकं च प्रयागं च पुष्करं नैमिषं तथा ।

पञ्चमं च गयाक्षेत्रं षष्ठं कुत्र न विद्यते ।।

अर्थ : नाशिक (नासिक), प्रयाग, पुष्कर, नैमिषारण्य एवं गया मिलकर पांच तीर्थक्षेत्र हैं । इनके तुल्य छठा तीर्थक्षेत्र कहीं नहीं है ।

४ आ. ‘गोदावरी’ एक मोक्षदायिनी तीर्थ

१. कहा जाता है कि कुरुक्षेत्रमें दान करनेपर, नर्मदा तटपर तप करनेपर तथा गंगातटपर मृत्यु होनेपर विशेष पुण्य प्राप्त होता है । किंतु उपर्युक्त तीनों कृत्य गोदावरीके तटपर करनेसे संबंधित व्यक्तिको मोक्ष प्राप्त होता है ।

२.

सप्तगोदावरे स्नात्वा नियतो नियताशनः ।

महत्पुण्यमवाप्नोति देवलोकं च गच्छति ।।

– महाभारत, पर्व ३, अध्याय ८३,श्लोक४४

अर्थ : ‘सप्तगोदावर’ तीर्थमें स्नान कर, इंद्रियोंको संयमित रख मिताहार करनेवालेको बहुत पुण्य प्राप्त होता है । ऐसा व्यक्ति मृत्युके उपरांत देवलोक जाता है ।

३. गोदावरीका दक्षिणी प्रवाह दुर्लभ एवं मोक्षदायी है । अतः इस क्षेत्रमें किए दानपुण्यका फल मिलता है, ऐसा क्षेत्रकी महिमामें कहा गया है ।

५. स्थानदर्शन

ब्रह्मगिरि : यह पूरा पर्वत ही शिवरूप है । भगवान शिवने ही ब्रह्मदेवके नामसे इसका नाम ‘ब्रह्मगिरि’ रखा ।

कुशावर्त तीर्थ : यह पवित्रतम तीर्थ है । गंगाके प्रवाहको दर्भ अर्थात ‘कुश’से रोका था; इसलिए त्र्यंबकेश्वर तीर्थका नाम ‘कुशावर्त’ पडा ।

पंचवटी : एक समयकी बात है, अपने तपोबलसे उन्मत्त पांच ऋषिपुत्र सूर्यपर हंसे । उस समय सूर्यके शापसे वे यहां पांच वटवृक्ष बन गए । तबसे इस स्थानको ‘पंचवटी’ कहने लगे । आगे श्रीरामदर्शनसे उन्हें मुक्ति मिली ।

रामतीर्थ (रामकुंड) : ब्रह्मदेवके पांच मस्तकोंमेंसे एक सिर ऊधमी (शरारती) था । उसने शिवनिंदा की । इसलिए शंकरजीने ‘कृपाल’ शस्त्रसे ब्रह्माका मस्तक काट दिया । ब्रह्महत्याका पापक्षालन करने हेतु शंकरजीने रामतीर्थमें स्नान किया । रामतीर्थमें स्नान करनेसे भूत, प्रेत, पिशाच आदि बाधाएं तथा पापोंका नाश होता है । इसमें किया स्नान पुण्यप्रद होता है । इसलिए श्रद्धालु जन नासिक क्षेत्रमें प्रमुखरूपसे रामकुंडमें स्नान करते हैं ।

अस्थिविलय तीर्थ : यह स्थान गोदावरीकी धारामें रामकुंडके पश्चिममें स्थित है । यहां अस्थियोंका विसर्जन करना पुण्यप्रद है । यहांके जलमें विसर्जित अस्थियां साढेतीन घडीमें (८४ मिनटमें; १ घडी अर्थात २४ मिनट) पूर्णतः घुल जाती हैं । (अस्थिविलयतीर्थमें बडी मात्रामें अस्थियां प्रवाहित करनेपर भी उनका ऐसे विलय होते रहना, यह हिंदू धर्मशास्त्रको नकारनेवाले वैज्ञानिकोंके लिए चपत है ।)

अन्य धार्मिक क्षेत्र : इसके अतिरिक्त ‘बद्रिकासंगम, अरुणासंगम तीर्थ, रामगया तीर्थ जैसे तीर्थोंके साथ ही कपालेश्वर मंदिर, सुंदरनारायण मंदिर, गंगा मंदिर, रामेश्वर मंदिर, राम मंदिर, सीता गुफा यहांके प्रसिद्ध स्थान हैं ।

 ६. सिंहस्थ कुंभमेला

गुरुग्रहके सिंह राशिमें प्रवेश करनेके मुहूर्तपर नासिकमें कुंभमेलेका आयोजन होता है । इसलिए इसे ‘सिंहस्थ’की उपाधि लगाई जाती है । पुराणमें वर्णित है कि सिंहस्थके १३ मासके पुण्यकालमें नासिक क्षेत्रमें साढेतीन कोटि तीर्थ एवं तैंतीस कोटि देवता गोदावरी नदीके संपर्कमें आते हैं ।

६ अ. सिंहस्थ कुंभमेलेकी तीर्थयात्राके लाभ

गुरुग्रह सिंह राशिमें आनेपर साक्षात मां गंगा गुप्तरूपसे माता गोदावरीसे मिलने आती हैं । इस कारण, सिंहस्थ पर्वमें गोदावरीस्नान अत्यंत पवित्र माना गया है । इस विषयमें एक श्लोक है –

षष्ठिवर्षसहदाणि भागिरथ्यावगाहनम् ।

सकृद्गोदावरीस्नानं सिंहस्थे च बृहस्पतौ ।।

– पद्मपुराण

अर्थ : ६० सहस्त्र वर्ष भागीरथी नदीमें स्नान करनेसे जितना पुण्य मिलता है, उतना पुण्य गुरुके सिंह राशिमें आनेपर गोदावरीमें किए केवल एक स्नानसे प्राप्त होता है । पुराणमें वर्णित है कि सिंहस्थके एक वर्षके कालखंडमें दान, तप आदि कर्म करनेवालोंका पुण्य अनंत गुना बढ जाता है ।

६ आ. सिंहस्थ तीर्थयात्रा करनेकी विधि

पुण्याहवाचन एवं नांदीश्राद्ध कर गोदावरीमें स्नान करें । तत्पश्चात, वहीं श्राद्धादि कृत्य कर पंचवटीस्थित श्रीरामके दर्शन करें । सिंहस्थ पर्वकालमें महर्षि कश्यपने त्र्यंबकेश्वरके कुशावर्तमें पितृतर्पण तथा श्राद्धादि कर्म करनेके लिए कहा है । अतएव नासिक क्षेत्रसे त्र्यंबकेश्वर जाकर कुशावर्तमें स्नान, श्राद्धादि कृत्य कर भगवान त्र्यंबकेश्वरके दर्शन करें । वहांसे लौटकर पुनः पंचवटीमें श्रीरामके दर्शन करें । गोदावरीकी पूजा करें । फलयुक्त अघ्र्य दें । तत्पश्चात, ब्राह्मणोंको दान दें । पश्चात क्षौर (मुंडन) कर बिन लवणके (नमकके) उपवास करें । इस प्रकार सिंहस्थ यात्राका समापन होता है ।

६ इ. सिंहस्थ कुंभमेलेके समय शैव पंथियोंके कुशावर्त कुंडमें एवं वैष्णव पंथियोंके रामकुंडमें स्नान करनेका कारण

वर्ष १७६२ में नासिकमें शैव संन्यासियों एवं वैष्णव बैरागियोंके मध्य भीषण संघर्ष हुआ, जिसमें ३,१०० साधु मारे गए थे । इन साधुओंमें १,८०० संन्यासी एवं १,३०० बैरागी थे । इस संघर्षके पश्चात माधवराव पेशवाने दोनों समुदायोंमें संधि करवाकर एक व्यवस्था लागू की । तदनुसार शैव संन्यासियोंके १० अखाडे त्र्यंबकेश्वरमें एकत्र आकर कुशावर्त कुंडमें पवित्र (राजयोगी [शाही]) स्नान करते हैं । उसी प्रकार, वैष्णव बैरागियोंके ३ अखाडे नासिकमें एकत्र होकर रामकुंडमें पवित्र स्नान करते हैं ।

६ ई. ‘सिंहस्थ कुंभमेलेमें नासिक और त्र्यंबकेश्वर’का विवाद अनुचित !

सिंहस्थ कुंभमेला नासिकका है कि त्र्यंबकेश्वरका, यह विवाद कुछ स्थानीय क्षेत्रप्रेमी नागरिकोंने उत्पन्न किया है । इसलिए, सिंहस्थ कुंभमेलेमें आए श्रद्धालुओंके मनमें प्रश्न उत्पन्न होता है कि ‘खरा कुंभमेला कौनसा ?’ वास्तवमें, इन पवित्र तीर्थस्थलोंमें निवास करनेवाले लोगोंने धर्मशास्त्रका उचित अध्ययन नहीं किया; इसलिए यह विवाद उत्पन्न हुआ है, जो सर्वथा अनुचित है । सिंहस्थ कुंभमेला, नासिक और त्र्यंबकेश्वर दोनों क्षेत्रोंके लिए समानरूपसे लागू है । क्योंकि –

१. सिंहस्थ कुंभमेला प्रमुखतः गोदावरी तीर्थसे संबंधित है तथा यह तीर्थ नासिक और त्र्यंबकेश्वर दोनों क्षेत्रोंसे संबंधित है ।

२. धर्मशास्त्रमें वर्णित सिंहस्थ यात्रा, नासिक एवं त्र्यंबकेश्वर गए बिना विधिवत पूर्ण नहीं की जा सकती ।

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – कुंभमेलेकी महिमा एवं पवित्रताकी रक्षा)

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