हिन्दू राष्ट्र के संदर्भ में सामान्यत: पूछे जानेवाले प्रश्न (FAQ’s) !

 

१. हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?

स्वतंत्रता के समय का एवं आज के भारत का अभ्यास करें ! आप को क्या दिखेगा ?

१. अर्थव्यवस्था : १९४७ मेें जहां १ पैसे का भी ऋण नहीं था, उस भारत में आज प्रत्येक नागरिक अपने सिर पर ३० हजार से भी अधिक रुपयों के ऋण का भार ढो रहा है ।

२. व्यापार : १९४७ में ३३ प्रतिशत से अधिक निर्यात करनेवाला भारत आज १ प्रतिशत से भी अल्प निर्यात कर रहा है ।

३. नक्सलवाद, जिहादी दहशतवाद : जहां एक भी संवेदनशील जनपद (जिला) नहीं था, उस भारत में आज ३०० से भी अधिक जनपद संवेदनशील बन गए हैं ।

४. गोहत्या : जहां प्रति नागरिक एक-दो गौएं होती थीं, उस भारत में अबाध गोहत्या के कारण आज १२ व्यक्तियों पर एक गाय है ।

  • देशाभिमान जागृत रखनेवाले भारत से, देशाभिमान गिरवी रखनेवाला भारत ।
  • निम्नतम भ्रष्टाचार करनेवाले भारत से भ्रष्टाचार की उच्चतम सीमातक पहुंचा भारत ।
  • सीमापार झंडा फहरानेवाले भारत से आज नहीं तो कल, कश्मीर से हाथ धो बैठने की प्रतीक्षा करनेवाला भारत ।

मुघल आक्रमणकारियों एवं धूर्त ब्रिटिशोंने भी भारतीय जनता को जितना त्रस्त नहीं किया, उससे सैकडों गुना लोकतंत्र द्वारा उपहारस्वरूप मिले इन शासनकर्ताओंने मात्र ६ दशकों में कर दिया है !

‘लोगों द्वारा, लोगों के लिए, लोगों का शासन’, लोकतंत्र की ऐसी व्याख्या, भारत जैसे विश्व के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश के लिए ‘स्वार्थांधों द्वारा स्वार्थ के लिए निर्वाचित स्वार्थी शासनकर्ताओं का शासन’, ऐसी हो चुकी है । इससे लोकतंत्र की निरर्थकता सुस्पष्ट होती है । इसीलिए हिन्दू राष्ट्र अर्थात रामराज्य की आवश्यकता है ।

२. हिन्दू राष्ट्र में सर्व समास्याओं का निवारण कैसे होगा ?

प्राचीन भारत में सनातन वैदिक हिन्दू धर्म को राज्याश्रय प्राप्त होने के कारण यह राष्ट्र ऐहिक (व्यावहारिक) तथा पारमार्थिक (आध्यात्मिक) दृष्टि से प्रगति के पथ पर था । इसलिए सुसंस्कृत एवं समृद्ध समाज, उत्तम वर्णव्यवस्था, आचार-विचारों की शुद्धि, आदर्श कुटुंबव्यवस्था इत्यादि की स्थापना इस हिन्दू धर्माधारित राष्ट्र में हुई थी ।

इतिहास का एक उदाहरण देखेंगे । छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म होने के पूर्व भी आज के समान ही स्थिति थी । महाराज का ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित होते ही मंदिर ढहाना बंद हुआ, गौहत्या, हिन्दुओं का धर्मांतरण रुक गया । केवल ‘हिन्दू राष्ट्र’की स्थापना ही हिन्दूद्वेषियों को भयभीत करने के लिए पर्याप्त थी ! अर्थात छत्रपति शिवाजी महाराज का ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित होते ही सबकुछ कुशल-मंगल हो गया !

३. ‘हिन्दू राष्ट्र’में मुसलमानों का क्या करोगे ?

‘हिन्दू राष्ट्र’का विषय निकलते ही एक निरर्थक प्रश्न तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों द्वारा पूछा जाता है, ‘हिन्दू राष्ट्र’में मुसलमानों के साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा ? वास्तव में यह प्रश्न मुसलमानों को पूछना चाहिए । वे नहीं पूछते । वे तो यही कहते हैं, ‘हंसके लिया पाकिस्तान, लडके लेंगे हिन्दुस्तान !’ तथापि इस प्रश्न का भी उत्तर है । आगामी ‘हिन्दू राष्ट्र’में मुसलमानों से ही नहीं; अपितु सभी पंथियों से वैसा ही व्यवहार किया जाएगा जैसा शिवराज्य में किया गया था !

४. क्या ‘हिन्दू राष्ट्र’ में उचित शिक्षा मिल सकेगी ?

इस प्रश्न का उत्तर है कि, हिन्दू राष्ट्र में ही उचित शिक्षा मिल सकेगी । किसी समय भारत के तक्षशिला, नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों में केवल भरतखंड के ही नहीं अपितु एशिया एवं यूरोप खंडों के विद्यार्थियों को भी शिक्षा दी जाती थी । ‘विद्याधीश (विद्या के आश्रयस्थान)’ भारत की वर्तमान शिक्षाप्रणाली सर्व दृष्टि से निरर्थक सिद्ध हुई है ।

वर्तमान में प्राथमिक शिक्षा से उच्चशिक्षातक विद्यार्थियों को प्रवेश हेतु दानस्वरूप हफ्ता देना पडता है । २६ प्रतिशत भारतीय जनता का निरक्षर होना, शासनकर्ताओं के ‘सर्वशिक्षा अभियान’की विफलता का दर्शक है ! दूसरी ओर, राष्ट्रद्रोही एवं असत्य इतिहास पढाया जाने के षड्यंत्र के कारण, विद्यार्थियों को अस्मिताहीन बनाया जा रहा है  ! विदेशी शिक्षापद्धति के कारण भावी पीढी स्वधर्म एवं स्वसंस्कृति से वंचित हो गई है । इसकी अपेक्षा, ‘हिन्दू राष्ट्र’ में विद्यार्थियों में राष्ट्राभिमान तथा धर्माभिमान निर्माण करनेवाली शिक्षा दी जाएगी । पूरी तरह से आदर्श ऐसे विद्यार्थियों की पीढी की निर्मिती की जाएगी ।

५. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु हिन्दू संगठनों ने एकत्रित रूप से कार्य करना आवश्यक क्यों है ?

किन्हीं एक-दो समस्याओं के विरोध में लडने की अपेक्षा ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करना आवश्यक, मात्र भारत के लोगों के लिए ही नहीं; अपितु अखिल मानवजाति के कल्याण हेतु स्थापित किया जानेवाला ‘हिन्दू राष्ट्र’ सहज ही स्थापित नहीं होगा । पांडव मात्र पांच गांव चाहते थे, वे भी उन्हें सहजता से नहीं मिल सके । हमें तो कश्मीर से कन्याकुमारीतक अखंड ‘हिन्दू राष्ट्र’ चाहिए । इसके लिए बडा संघर्ष करना होगा । भारत की किन्हीं एक-दो समस्याओं के (उदा. गोहत्या, धर्मांतरण, गंगा नदी का प्रदूषण, कश्मीर, राममंदिर, स्वभाषारक्षा आदि के) विरोध में पृथक-पृथक लडने की अपेक्षा सर्व समविचारी व्यक्ति एवं संस्थाएं मिलकर ‘हिन्दू राष्ट्र-स्थापना’का ही ध्येय रखकर कार्य करेंगे, तो यह संघर्ष थोडा सुलभ होगा ।

स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद, वीर सावरकर, प.पू. गोळवलकर गुरुजी जैसे हिन्दू धर्म के महान योद्धाओं को अपेक्षित धर्माधारित ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित होने हेतु आवश्यक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक सामर्थ्य हिन्दुओं में आना चाहिए ।

६. ‘हिन्दू धर्म’ ही भारतीयों की राष्ट्रीयता कैसी है तथा भारतभूमि को हम ‘हिन्दू राष्ट्र’ क्यों कहें ?

हमने अनेक बार सुना होगा की, हिन्दू धर्म ही भारत की राष्ट्रीयता है ऐसे अनेक हिन्दू नेता कहते हैं । अनेक तथाकथित धर्मनिरपेक्षवादी लोग इस वक्तव्य को राष्ट्रद्रोही अथवा “Right Wing outfit” अथवा हिन्दू कट्टरपंथियों द्वारा किया वक्तव्य कहते हैं । दुर्भाग्यवश, हिन्दुओं में धर्मशिक्षा का अभाव होने के कारण अनेक सामान्य हिन्दुओं की विचारप्रक्रीया भी कुछ ऐसी ही होती है ।

१. वास्तव में देखा जाए तो, पंचखंड भूमंडल में ‘भरतखंड (भारत)’ सर्वाधिक पुण्यवान है; क्योंकि यहां हिन्दू (सनातन) धर्म का अस्तित्व है ।

२. महर्षि अरविंद ने कहा था, ‘‘हम भारतीयों के लिए हिन्दू धर्म ही राष्ट्रीयता है । इस हिन्दू राष्ट्र का जन्म हिन्दू धर्म के साथ ही हुआ है तथा उसके साथ ही इस राष्ट्र को गति प्राप्त होती है । हिन्दू धर्म के विकास से ही इस राष्ट्र का विकास होता है ।’’

३. ‘राष्ट्र’ एक ऐसा जनसमूह है, जिसकी भाषा, धर्म अथवा पंथ, परंपरा, भूप्रदेश और इतिहास एक होता है; तथापि, राष्ट्रीयता निर्माण होने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात होती है उस समाज के एक ‘राष्ट्र’ होने की दृढ इच्छाशक्ति ।

४. इस संबंध में पश्चिमी विचारक रेनन कहता है, ‘राष्ट्र की अवधारणा का मूल आधार हृदयों में जागृत होनेवाली एकता की तीव्र इच्छा और उसकी प्रेरणा’ है । यह आंतरिक चेतना और प्रेरणा ही राष्ट्र की आत्मा होती है । राष्ट्र और राष्ट्रीयता के मूलतत्त्वों एवं लक्षणों की कसौटी पर हिन्दू समाज की ओर देखने से ही, ‘हिन्दू राष्ट्र’की अवधारणा स्पष्ट होती है ।

५. भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा वैदिक है । यहां की सर्व भाषाएं संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुई हैं । इसीलिए कश्मीर से कन्याकुमारीतक सर्व धार्मिक विधियां वैदिक पद्धति से और संस्कृत भाषा में की जाती हैं ।

६. इसीलिए भारतभूमि केवल हिन्दूबहुल भूमि नहीं; अपितु यह भूमि अर्थात एक स्वयंभू ‘हिन्दू राष्ट्र’ है । हिन्दू धर्म को राज्याश्रय मिलने पर ही इस भूमि पर ‘हिन्दू राष्ट्र’ अवतरित होता है ।

७. धर्माधारित ‘हिन्दू राष्ट्र’ क्या है ?

कुछ लोगों को ‘हिन्दू राष्ट्र’ कहते ही, किसी राजनीतिक दल द्वारा प्रस्तुत उसके लाभ की संकल्पना का स्मरण होता है; परंतु ‘हिन्दू राष्ट्र’की संकल्पना केवल राजनीतिक नहीं, अपितु राष्ट्रनिष्ठ तथा धर्माधारित जीवन जीने की एक प्रगल्भ संस्कृति तथा व्यवस्था होगी ।

‘हिन्दू राष्ट्र’ कहने पर उसकी ओर ‘हिन्दुओं का राष्ट्र’ ऐसे कुछ संकुचित अर्थ से देखा जाता है; तथापि ‘हिन्दू राष्ट्र’ मानव, पशु, पक्षी आदि से लेकर सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीवों के उद्धार का विचार रखनेवाली एक ईश्वरसंकल्पत सामाजिक व्यवस्था होगी; इसलिए उसे ‘ईश्वरीय राज्य’ कह सकते है ।

त्यागी तथा राष्ट्रोद्धार की भावना रखनेवाला धर्माचरणी समाज, कर्तव्यनिष्ठ सुरक्षातंत्र, सत्यान्वेषी न्यायप्रणाली तथा कार्यक्षम प्रशासन, ये इस ‘हिन्दू राष्ट्र’की विशेषताएं होंगी ।

सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्रप्रेम तथा धर्मनिष्ठा रखनेवाले, उसी प्रकार समाजहित के लिए निःस्पृहता से दिन-रात प्रयत्नरत राजनेता, इस ‘हिन्दू राष्ट्र’के आधारस्तंभ होंगे । ऐसा ‘हिन्दू राष्ट्र’ विश्व का एक ‘आदर्श राज्य’ होगा !

८. हिन्दू राष्ट्र केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं, अपितु अखिल मानवजाति के हित में कैसे हो सकता है ?

सनातन हिन्दू धर्म नीति का मूल है । धर्मनिरपेक्ष राज्यप्रणालियों मेें धर्म का (पंथ का नहीं) आधार न होने के कारण राष्ट्र के नागरिकों का नैतिक अधःपतन हो रहा है ।

इसलिए कालबाह्य साम्यवाद(Communism), अत्याचारी तानाशाही(Dictatorship)एवं स्वार्थी लोकतंत्र (Democracy), विश्व की इन असफल राज्यप्रणालियों का आदर्श विकल्प ‘हिन्दू धर्माधारित राज्यप्रणाली’ ही है; राष्ट्रीय जीवन में नैतिकता का संवर्धन करने हेतु विश्व के समस्त राष्ट्रों को धर्माधारित हिन्दू राज्यप्रणाली अपनाना आवश्यक है ।

यदि इस पृथ्वी पर शांतिपूर्ण एवं आनंदमय जीवन जीना है, तो हिंसाचार की नहीं, सहिष्णुता की आवश्यकता है । सनातन हिन्दू धर्म सहिष्णुता जैसे उच्चतम मूल्यों की रक्षा करने की अमूल्य शिक्षा देता है । इसलिए वह समस्त विश्व के लिए कल्याणकारी है । यदि विश्व के संपूर्ण राष्ट्र हिन्दू धर्म पर आधारित राज्यप्रणाली आचरण में लाएं तो हिंसाचारी प्रवृत्तियों का लोप हो जाएगा; परिणामस्वरूप संपूर्ण विश्व युद्धरहित हो जाएगा । अखिल विश्व शांति अनुभव करेगा और विश्वशांति का महान लक्ष्य साध्य हो जाएगा !

‘जिस समय धर्मग्लानि होती है, अर्थात मानव तमोगुण के शिखर पर पहुंचता है, उस समय सर्वत्र अनैतिकता ही फैलती है । ऐसी स्थिति में प्रकृति पूर्ण रूप से प्रतिकूल हो जाती है एवं प्रदूषण जैसी अनेक समस्याओं का सामना करना पडता है । ऐसा होने पर यह समझा जाता है कि सृष्टि का विनाश निकट है । ऐसी दशा में मानव में सत्त्वगुण की वृद्धि हो जाए तो ही सृष्टि का विनाश टल सकता है । उसके लिए रामराज्य, अर्थात हिन्दू धर्म द्वारा नियंत्रित संविधान पर आधारित राज्य ही एकमात्र उपाय है । आज वह समय निकट आ चुका है !’ – प.पू. काणे महाराज, नारायणगांव, जनपद पुणे, महाराष्ट्र. (वर्ष १९९१)

९. आदर्श ‘हिन्दू राष्ट्र’ कैसा होगा ?

१. राजनेता : धर्मपालक, नीतिमान एवं निःस्वार्थी होंगे । वे जनता से पितृवत प्रेम करनेवाले एवं उनसे धर्मपालन करवानेवाले होंगे ।

२. प्रशासन : कार्यतत्पर एवं पारदर्शक होगा । आरक्षण द्वारा नहीं; अपितु कुशलता, पात्रता एवं राष्ट्रभक्ति आदि गुणों से युक्त नागरिकों का प्रशासन में ‘अधिकारी’के रूप में चयन किया जाएगा।

३. न्यायप्रणाली : लोकतंत्रसमान ‘कानून का राज्य’ (कोर्ट ऑफ लॉ) नहीं होगा, तथापि हिन्दू राष्ट्र में ‘न्याय का राज्य’ (कोर्ट ऑफ जस्टिस) होगा । नागरिकों को शीघ्र अचूक न्याय मिलेगा !

४. प्रजा : धर्माचरणी, नीतिमान एवं राष्ट्रहितदक्ष होगी । प्रजा ‘अधिकार’ मांगनेवाली नहीं अपितु ‘कर्तव्य’ पूर्ण करनेवाली होगी । इस कारण ‘हिन्दू राष्ट्र’में मोर्चे, आंदोलन, हडताल, बंद आदि नहीं होंगे ।

।। जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम् ।।

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